हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार,इमाम ए जुमआ सावेह हुज्जतुल इस्लाम जाफ़र रहीमी ने हमारे संवाददाता से बातचीत में कहा,जनता ने इन वर्षों में आयतुल्लाह रईसी की कई विभिन्न पहलुओं वाली शख्सियत और उनके व्यवहार का प्रत्यक्ष अनुभव किया है।उनकी पहली झलक राष्ट्रपति पद के लिए आयोजित बहसों में देखी गई।जहाँ उन्होंने संजीदगी, धैर्य और संयम का प्रदर्शन किया।
वह एक शरीफ, शांत स्वभाव वाले, ग़ुस्से पर क़ाबू रखने वाले और सहनशील व्यक्ति थे,जिन्होंने तमाम आरोपों और कटाक्षों के बावजूद तक़्वा को नहीं छोड़ा, बल्कि दूसरों को भी तक़्वा अपनाने की सलाह देते रहे।
रहीमी साहब ने आगे कहा,शहीद रईसी का व्यवहार इन मुनाज़रात में इमाम जाफर सादिक़ (अ.) के इन हदीसों की ज़िंदा तफ़्सीर (व्याख्या) थे ,जो इंसान लोगों की सख़्ती पर सब्र नहीं करता, वह अल्लाह की रज़ा (प्रसन्नता) तक नहीं पहुंच सकता।
(मस्तद्रकुल वसाइल, जिल्द 11, पृष्ठ 289)
अल्लाह के लिए सबसे पसंदीदा घूंट वह है जिसे बंदा अपने ग़ुस्से के वक्त निगल जाए चाहे वह सब्र से हो या धीरज से।
(अल-काफी, जिल्द 2, पृष्ठ 111)
जो व्यक्ति ग़ुस्से में होते हुए, जबकि वह बदला लेने में सक्षम हो, फिर भी अपने ग़ुस्से को रोक ले अल्लाह उसके दिल को अमन और ईमान से भर देता है।
(मस्तद्रकुल वसाइल, जिल्द 9, पृष्ठ 12)
हुज्जतुल इस्लाम रहीमी ने कहा,राष्ट्रपति बहसों के माहौल में शहीद रईसी का धैर्य आज़ादी, मर्दानगी और जावानमर्दी की निशानी था।हालाँकि उनके पास दूसरों की सबसे ज़्यादा जानकारी थीं, लेकिन उन्होंने कभी किसी का पर्दा नहीं उठाया।
हदीस में कहा गया है,मुरव्वत सभी अच्छाइयों और नैतिक गुणों का एक समग्र नाम है, और इंसान की सबसे खूबसूरत साज-सज्जा जावानमर्दी (उदार और बहादुर चरित्र) है।
रहीमी साहब ने आगे कहा,आग़ा रईसी की दूसरी शानदार झलक उनके राष्ट्रपति काल में सामने आई।इस दौर में लोग एक खुश-ख़ुलक, गंभीर और विनम्र इंसान से रूबरू थे जो शहीद राजई की याद दिलाते थे।शहीद रईसी ने अपने व्यवहार से यह साबित किया कि राष्ट्रपति का ओहदा न तो उनके व्यवहार पर असर डालता है और न उनके रिश्तों पर।बल्कि वे इस ज़िम्मेदारी को संभालकर और भी ज़्यादा इंक्सारी (विनम्र) और मुख़लिस (निष्कलंक भाव) के साथ जनता से जुड़े रहे।
आख़िर में इमाम ए जुमआ सावेह ने कहा,शहीद रईसी एक दृढ़ निश्चयी, सक्रिय, जोश से भरपूर और उम्मीद देने वाले व्यक्ति थे।
लोगों की सेवा करना, उनकी परेशानियाँ हल करना, उन्हें खुश करना और उनके कामों को आगे बढ़ाना यही उनके रोज़मर्रा की सोच थी।
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